Thursday, 4 April 2019

चौकीदार


चौकीदार! चौकीदार!
दो जानिब से ये ललकार
मेरे प्यारे चौकीदार!

जुमलों की कोई हद्द नहीं
सरहद्द पर भी अमन नहीं
हिंसा, क्रोध इन के औज़ार
सब से आगे चौकीदार

किसानों की फ़िक्र नहीं
फौजियों की कद्र नहीं
युवा हमारे बेरोज़गार
सब से आगे चौकीदार

अदालतों में न्याय नहीं
अस्पताल में शिफ़ा नहीं
जीयो लेकिन सदाबहार
सब से आगे चौकीदार

लेखक बेख़ौफ़ लिखें नहीं
पत्रकारिता हो नहीं
दुश्मन इन के कलाकार
सब से आगे चौकीदार

विविधता से प्यार नहीं
प्यार इन्हे मंज़ूर नहीं
हिन्दू-मुस्लिम बने शिकार
सब से आगे चौकीदार    

मगर ------------------------------

 देश अभी ये झुका नहीं
रूह उस की मिटी नहीं
इक आख़री धक्के की दरकार
पराजित फिर चौकीदार!